फन तारा और 13 किरणे
फन भगवान ने समय निर्धारण की एक विशिष्ट पद्धति बताई। उनके अनुसार यदि फन प्रतीक को पश्चिम दिशा में स्थित फन तारे के नीचे 45 डिग्री के कोण पर रखें तो 13 अदृश्य किरणे प्रकट होती हैं। इन 13 मे से सिर्फ एक किरण ही फन प्रतीक को एक बार में स्पर्श करती है। ये किरणे एक एक करके धरती पर आती हैं और फन प्रतीक का स्पर्श करती है। प्रति किरण को धरती पर पहुँचने में कुछ दिनो का समय लगता है। जैसे ही नयी किरण धरती पर पहुँचती है पुरानी किरण अदृश्य हो जाती है और नयी किरण उसका स्थान ले लेती है। इस प्रकार कम से कम एक किरण तो हर समय फन प्रतीक को स्पर्श अवश्य कर रही होती है।
यह 13 किरणे 13 माह की प्रतीक है। जिस समय जो किरण फन प्रतीक को स्पर्श करती रही होती है उस समय वही माह चल रहा होता है। इन 13 किरणों के नाम ही 13 महीनो के नाम हैं। पहली किरण के अलावा बाकी 12 किरणे धरती तक आने में 30 दिन का समय लेती हैं। किन्तु पहली किरण धरती पर सिर्फ 7 दिनो में ही पहुँच जाती है। इस प्रकार 13वी किरण फन प्रतीक को केवल 7 दिन ही स्पर्श कर पाती है। इस कारण फन पंचांग में पहले 12 महीने 30 दिनो के और अंतिम एक महीना केवल 7 दिनो का ही हो पाता है।
ये 13 माह / किरणे हैं: लोकमा, परमा, ओडमा, बूधमा, किरमा, तोलमा, लेटमा, सोमा, ओमा, नोमा, दिस्मा, लेमा, मसमा।
पचांग की शुरुआत 19 जनवरी 2003 को उस दिन हुई जब भगवान फन ने दर्शन देकर पहली बार फन प्रतीक को फन तारे के नीचे रखा। उस दिन लोकमा नाम की किरण पहली बार धरती पर पहुंची और उस दिन से 1 लोकमा गिना गया। फन धर्म में आने वाले सभी पर्व एवं उत्सव इसी पंचांग पर आधारित होते हैं।
1 लोकमा को मोम्बत्तावली, 5 तोलमा को जैसिका पंचमी, 8 लेटमा को जोनाष्ठमी, 13 ओमा को घोंसूवर्धन, 1 से 7 मसमा को फनोत्सव।
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