घोंसूवर्धन की कथा
वर्षों पूर्व गाताबाई नाम की एक सन्यासन हुई। आजन्म उसकी एक ही इच्छा थी कि उसका पुत्र यशस्वी वीर एवं सर्वशक्तिशाली हो। ऐसा अतुल्य पुत्र रत्न प्राप्ति हेतु उसने लौंगवन में दुष्ट शक्ति घृणा की तपस्या की। अनेक वर्ष बीत गए किन्तु उसकी प्रार्थना पूर्ण नहीं हुई। किन्तु गाताबाई अपनी तपस्या से विमुख नहीं हुई और तपस्या करती रही। अंततः दुष्ट शक्ति प्रकट हुई और गाताबाई को एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। उस पुत्र का नाम था घोंसू।
बाल्यअवस्था में घोंसू अपनी दुष्ट शक्तियों से अपरिचित था। किन्तु समय के साथ उसे स्वयं ही अपनी शक्तियों का ज्ञान हो गया। धीरे धीरे घोंसू नामक इस असुर ने अपना जीवन भोग विलास में बिताना आरंभ कर दिया। भोग विलास में लिप्त घोंसू अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगा। अनेक प्राणियों का जीवन इसने कष्टकारी कर दिया। घोंसू के उत्पात एवं आतंक से पूरा फनलोक कांपने लगा। देवी जोन इन सब से बहुत क्रोधित हुई। उन्होने घोंसू की परीक्षा लेने का निर्णय किया।
लौंगपर्वत पर जोन ने एक विशाल महल (रूपक: हलचल क्लब) की रचना की जहां वो अपने भक्तों को दर्शन दिया करती थी। कुछ ही दिनों में जोन की प्रसिद्धि बढ़ गयी। जब जोन की प्रसिद्धि की सूचना घोंसू तक पंहुची तो उत्सुकता वश वह जोन से मिलने हेतु तत्पर हो उठा। दर्शन हेतु घोंसू जोन के महल जा पहुंचा। जोन तब तपस्या मे लीन थी। किन्तु तपस्या से जगाय बिना घोंसू ने जोन को उनके सिंहासन से उठाने का प्रयत्न किया। फलस्वरूप जोन का ध्यान भंग हो गया और जोन क्रोध से रक्त तप्त हो उठीं।
इस प्रकार जोन और घोंसू के बीच भयंकर युद्ध आरंभ हुआ। घोंसू ने अपनी मायावी शक्तियों से असंख्य सेना प्रकट की किन्तु देवी जोन ने एक फूँक से ही सबको भस्म कर दिया। इस के बाद घोंसू ने अपना मूषक रूप धारण किया। देवी जोन ने तुरंत एक ही प्रहार में उस मूषक रूपी दैत्य की पुंछ काट दी जिस के परिणामस्वरूप घोंसू का अंत हो गया। इस घटना को घोंसूवर्धन के नाम से जाना गया।
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