फन धर्म का उद्भव
फन धर्म की अवधारणा
फन धर्म की अवधारणा कब और कैसे पड़ी, ये एक लंबी कहानी है। इस धर्म की नीव फन संवत (फन धर्म का अपना संवत है) की शुरुआत के 4 वर्ष पूर्व हुई थी। ईस्वी संवत 1998 मे तीन अपरिचित लोगों की मुलाक़ात हुई। नाम था जोन, जैसिका और जेमी (रूपक: ये नाम वास्तविक नहीं हैं)। इन तीनों को भी नहीं पता था कि उनके जीवन मे आगे क्या होने वाला है।
उन तीनों नें अपना एक क्लब बनाया। नाम रखा हलचल क्लब। उस साल उन तीनों ने खूब मज़े किए। एकाएक उनपर जिम्मेदारिया और कई तरह की पाबन्दियाँ लगने लगी। उनके माता पिता एवं अन्य अनेक माध्यमों से उन पर पाबन्दियाँ लगा दी गयी। उनका अपने घर से बाहर निकलना बंद हो गया और फलस्वरूप उनकी समस्त योजनाएँ विफल होने लगी। इस प्रकार उनको 3 वर्ष बीत गए।
चौथे वर्ष में उनका मन बहुत अधिक विचलित होने लगा। भटकते मन को शांत करने के लिए चौथे वर्ष के अंत तक इन तीनों ने खूब तपस्या (रूपक: आत्ममंथन) की। ईस्वी संवत जनवरी 19, 2003 की शाम इन तीनों को कल्पनाशीलता एवं आशावादिता के प्रभू भगवान फन के दर्शन प्राप्त हुये (अर्थात: उन तीनों को प्रकाश का वह मार्ग मिल गया जिसके द्वारा वह अपने जीवन मे आ रही कठिनाइयों को दूर कर सकते थे)। भगवान फन ने उनको अनेक उपदेश दिये और ज्ञान का मार्ग दिखाया। इस दिन से फन धर्म और फन संवत की शुरुआत हुई। इस ग्रंथ में फन भगवान के द्वारा दिये गए उपदेशों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है।
आगे आप पढ़ सकते हैं
जब हलचल क्लब की नयी नयी रचना हुई तब कई दैत्यों और असुरों (रूपक: दुख एवं समस्या) ने इसकी सफलता के बीच बाधक बन कर जोन, जैसिका और जेमी को कष्ट पहुंचाने की चेष्ठा की। उन असुरों का इस पवित्र पुस्तक मे क्रमश: इस प्रकार वर्णन किया हुआ है। जानने के लिए आगे के लेख पढ़ें।